भारतीय शासन व्यवस्था परिवर्त्तन विचार मंच

पृष्ठभूमि

सन् एक हजार नौ सौ साठ के दशक में बिहार अभियंत्रण महाविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय के असैनिक अभियंत्रण में व्याख्याता श्री त्रियुगी प्रसाद संयुक्त राज्य अमेरिका के इलिन्वॉय विश्वविद्यालय मंय अपना पीएचडी कर रहे थे। अपने चार वर्षों के प्रवास के प्रथम वर्ष 1965 में विश्वविद्यालय के पुस्तकालय के अध्ययन कक्ष में बैठकर, जहाँ साधारणतः छात्र अवकाश के समय में अपना नियत गृह कार्य करने के लिये आते थे, इन्होंने "Corruption in Public Life in India" (भारत के सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार) पर एक अप्रकाशित लेख लिखा। उस समय भ्रष्टाचार इतना विकराल रूप नहीं धारण कर पाया था जैसा अब हो गया है और शायद ही एक समस्या के रूप में इस पर चर्चा अथवा विमर्श होता था। इसे जन जीवन का प्रायः स्वीकार्य तथ्य मान लिया गया था। संयुक्त राज्य अमेरिका के परिप्रेक्ष्य में भारत की स्थिति की तुलना करने पर उस समय भी भ्रष्टाचार ने एक सुस्पष्ट समस्या के रूप में श्री प्रसाद को प्रभावित किया था।

वर्ष 1968 के अन्त में अपना अध्ययन पूरा कर भारत (पटना) लौटने पर उन्होंने एक स्थानीय अंग्रेजी दैनिक के गणतंत्र दिवस अंक में प्रकाशनार्थ "India Under Shackhes" (भारत जंजीरों में) शीर्षक से एक लेख भेजा जो तकनीकी कारणों से प्रकाशित नहीं किया जा सका। उस लेख का मुख्य आशय था कि भारत अभी भी उसी औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की जंजीर में जकड़ा है, जिसमें इसे एक शताब्दी से अधिक समय से इसके व्यवस्थित शोषण, प्रभावी नियंत्रण तथा नैतिक भ्रष्टीकरण के लिये औपनिवेशिक स्वामियों ने इसको बाँध रखा था।

उस देश (अमेरिका) से, जिसने प्रायः दो शताब्दी पूर्व अपने नागरिकों के, जिन्होंने अपने पूर्वजों के देश में लम्बे समय तक अत्याचार झेला था और जो अपने नये देश में स्वतंत्रता की साँस लेने तथा अपनी नियति सुनिश्चित करने के लिये आए थे, समुचित विकास, समृद्धि तथा खुशहाली सुनिश्चित करने के लिये इसी प्रकार की औपनिवेशिक शासन व्यवस्था को उखाड़ फेंका था, नये-नये भारत आये श्री प्रसाद को स्पष्ट रूप से लगा कि यह औपनिवेशिक शासन व्यवस्था ही भारत में भ्रष्टाचार आदि अनेक समस्याओं के जन्म का मूल कारण है।

जल संसाधन विज्ञान में उच्च शिक्षा तथा प्रवीणता प्राप्त कर अपने पैतृक संस्थान में लौटने पर भारत के पूर्वी क्षेत्र के जल संसाधन की अनेक जटिल समस्यायों के समाधान एवं इसकी प्रचुर क्षमता के विकास के लिये प्रायोजित विभिन्न कार्य-क्रमों के सम्पादन में डॉ॰ प्रसाद ने अपने को पूर्ण रूप से लगा दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह महसूस किया कि वर्त्तमान में पूर्वी क्षेत्र की व्याप्त गरीबी को संभावित समृद्धि में बदलने की कुंजी जल संसाधन में ही निहित हैं, और यह भी कि जल संसाधन के आधुनिक ज्ञान के द्वारा ही इस कुंजी का प्रभावी उपयोग किया जा सकता है। यद्यपि इस ज्ञान के उपयोग से कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां मिलीं, परन्तु उन जटिल समस्याओं के समाधान पर, जिनसे यह क्षेत्र लम्बी अवधि से जूझ रहा था, इस ज्ञान का वाँछित संघात नहीं हो सका। अन्त में, उन्होंने यह महसूस किया कि इस असफलता का कारण भी प्रबुद्धता विरोधी इस अनुपयुक्त शासन व्यवस्था में ही निहित है।

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की अवधि पूर्ण होने पर वर्ष 2004 में सम्पन्न लोकसभा चुनाव परिणाम श्री अटल बिहारी बाजपेयी जैसे अनुभवी एवं लब्ध प्रतिष्ठ नेता के नेतृत्व में गठित तत्कालीन सरकार, जो 1999 में एक प्रभावी बहुमत से सत्ता में आयी थी, का अपदस्थ हो जाना और उसके फलस्वरूप कांग्रेस पार्टी नीत गठबंधन सरकार का सत्ता में आना मतदान का यह सामान्य पैटर्न ही दर्शाता है कि जनता पदस्थ दल के विरूद्ध मतदान करती है, न कि किसी विशेष दल के लिये। राजनैतिक दलों का गठबंधन भी प्रायः येनकेन प्रकारेण सत्ता प्राप्त करने के लिये ही बनता है, न कि किसी सैद्धान्तिक आधार पर। इन चुनावी परिणामों से सतत् यही संदेश आता है कि वह परिवर्त्तन जनता जिसकी आकांक्षा करती है सदा मृगमरीचिका ही सिद्ध होता है। उनकी इसी अनवरत समझ कि मात्र सत्ता परिवर्त्तन जनता की आकांक्षाओं को नहीं पूरा करता, ने लम्बे समय से उनके जेहन में बसे हुए स्वतंत्र भारत के लिए वाँछित शासन व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखने के लिये डॉ॰ प्रसाद को प्रेरित किया, और उन्होंने "India's Crying Need for Change of the System of Governance : Call for Action" (शासन व्यवस्था परिवर्त्तन भारत की नितांत आवश्यकता: कार्रवाई के लिए आह्वान) शीर्षक से एक विस्तृत लेख लिखा जिसमें घटनाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा वर्त्तमान शासन व्यवस्था जनित राष्ट्रीय जीवन की विकृतियाँ, यथा स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र की भ्रान्तियाँ, वर्त्तमान शासन व्यवस्था एवं वाँछित शासन व्यवस्था के स्वरूप; और लक्ष्य तक ले जाने के लिए मार्ग दर्शन एवं क्रियाकलाप वर्णित है। इस लेख में व्यक्त विचारों पर विचार-विमर्श के लिये दिनांक 22 जनवरी 2006 को सात प्रबुद्ध व्यक्तियों की, जिसमें पाँच विश्वविद्यालयों के भूतपूर्व कुलपति थे, एक बैठक आहूत की गयी। इस बैठक में मानविकी, विज्ञान, अभियंत्रण, चिकित्सा, प्रशासन आदि विभिन्न पृष्ठभूमि वाले विद्वान शामिल थे। बैठक के भागीदारों ने लेख में सन्निहित बुनियादी विचारों को सैद्धांतिक ढंग से पुष्ट तथा भारत के लिये बड़ा महत्त्वपूर्ण पाया, और महसूस किया कि यही उचित समय है जब भारत को इस रास्ते पर लाया जाय। इस आशय के एक घोषणापत्र पर भी उन्होंने हस्ताक्षर किया। उसी बैठक में यह संकल्प भी किया गया कि लेख में बताये गये परिवर्त्तन के लिये डॉ॰ त्रियुगी प्रसाद के नेतृत्व में समर्पित भावना से तात्कालिक प्रभाव से एक अभियान आरंभ किया जाय। इसके लिये बैठक के भागीदारों का कोर ग्रुप बना कर Forum for Change of the System of Governance of India (भारतीय शासन व्यवस्था परिवर्त्तन विचार मंच) के नाम से एक संगठन बनाया गया।